"प्यारी साइकिल" मेरी साइकिल मुझे बहुत प्यारी. ढोटी बोझ सभी का बारी बारी, मेरी साइकिल मुझे बहुत प्यारी, ढोटी बोझ सभी का भारी भारी, इश साइकिल की बात निराली, इश् पर सारी दुनिया करती सवारी, मेरी साइकिल मुझे बहुत प्यारी. ढोटी बोझ सभी का बारी बारी, रोज सवेर यह सैर कराती, कभी ना रुकती कभी ना कहती, अगले पीछले पहिए पेर वो चलती, मेरी साइकिल मुझे बहुत प्यारी. ढोटी बोझ सभी का बारी बारी, एक दिन चलते चलते हो गयी बीमार, लगाकर टाके चार साथ मे, फिर हो गयी उठकर तेयार, मेरी साइकिल मुझे बहुत प्यारी. ढोटी बोझ सभी का बारी बारी, बढ़े प्यार से मुझे बेटाथी, मुझे दुनिया की शेर करती, कभी ना रुकती, कभी ना कहती, बस चलते ही चलते वो है जाती, मेरी साइकिल मुझे बहुत प्यारी. ढोटी बोझ सभी का बारी बारी |
Saturday, July 23, 2011
"प्यारी साइकिल"
Labels:
कविता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
साइकिस पर सुन्दर और बहुत प्य़ारी रचना लिखी है आपने!
ReplyDeleteइसमें साइकिल का चित्र भी तो लगा दीजिए!
--
कलर बॉक्स में नीचे बहुत स्पेस आ रहा है!
बैक स्पेस से कम कर दीजिए और अक्षरों का रंग नीला कर देंगे तो बहुत अच्छा लगेगा!
These are genuinely fantastic ideas about blogging really. You have touched some very nice points here. Please keep up this good writing.
ReplyDeleteAmazing or I can say this is a remarkable article.
ReplyDelete