Wednesday, June 22, 2011

Meri Dharti MAA


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किताब

" किताब"

मेरी किताबें कितनी सारी,
रखी है वो इधर उधर,
कहती है मुझसे बार बार,
मुड़कर देखो एक बार,
मुझे खोले कितने दिन बीत गए,
अब वो दिन कब आएँगे,
एक ना एक दिन आएँगे,
मेरी यादे वापस लाएँगे,

मेरी किताबे कितनी सारी,
रखी है वो इधर उधर,
मैं बेचारी धूल की मारी,
मारी फिरती  इधर उधर, 
कितने दिन ओर झेलूँगी,
वो जब आएगे मेरी धूल झाड़ेंगे, 
मेरी किताबे कितनी सारी,
रखी है वो इधर उधर,

Monday, June 20, 2011

"आईना" (सुरेश राजपूत)

"आईना"
कभी आपने महसूस किया है!
मगर मैंने तो महसूस किया है
मेरा आईना मुझसे बातें करता है,

आप मानो या न मानो,
ये आईना मझसे बातें करता है,
हर बात है उसकी मतवाली,
जब खड़े हो सामने उसके,
खुद हॅसने लगता है,
मेरा आईना मुझसे बाते करता है,

वो हर पल पल सुबहोशाम,
मेरा इंतज़ार करता है,
कब मैं जाऊँ उसके सामने,
कब मैं सिंगार करूँ,
कब वो मुझे निहारे,
कब मैं उसे निहारूँ,
यह देखकर खुश होता रहता है,
मेरा आईना मुझसे बाते करता है,

ये सोच कर वो भी हँसता है,
ये सोच कर मैं भी हँसता हूँ,
यह पागल है या मैं पागल हूँ,
मेरा आईना मुझसे बातें करता है,
सच मानो या ना मानो,

ये आईना मुझसे बातें करता है,


Friday, June 17, 2011

महा रानी लक्ष्मी बाई

महा रानी लक्ष्मी बाई
एक नारी 
जिसने कर दिया 
अंग्रेज़ों का जीना भारी,
जिसने दिया 
देश के लिए बलिदान

वो है कितनी बड़ी महान,
फिरंगी हो गये परेशान,
उनका था जीना हराम,
उसने शपथ ली 
इश पावन धरा की,
मुक्त कराने के लिए,
किये संघर्ष
देशवासियों में किया,
उत्साह और उत्कर्ष,
कर दिया अंग्रेज़ों को तार तार,
दोनों हाथों में थामी तलवार,
बाँध लिया कमर पर 
अपना छोटा सा लाल,
कर दिया सारा 
मैदान लाल.
आओ करें
इस वीरांगना को नमन!
अर्पित करते हैं
अपने श्रद्धा सुमन!!

सागर

ऐ सागर तू कैसा हैं, 
सब को समा लेता है,
हर किसी को अपना लेता है,
इसीलिए तुझे सागर कहते हैं,


लेकिन तू तो है बहुत महान् ,
हर किसी को बना लेता है अपनी शान,
तेरी है ये अज़ब कहानी,
यह बात किसी ने ना जानी,
लेकिन तू तो बहुत महान्,
तू कितना गहरा है, 
यह तुझे नही मालूम,
तेरी गहराई को मापती है 
दुनिया हर दम.
मगर फिर भी है
बहुत सी जानकारियों से अनजान
इसीलिए तो तू है बहुत महान्.

Thursday, June 16, 2011

चर्चा मंच: "आओ, जी लें" (चर्चा मंच-548)

चर्चा मंच: "आओ, जी लें" (चर्चा मंच-548)

" इस सदी का बेबस चाँद"

" इस सदी का बेबस चाँद"
कल मैंने
चाँद पर लगा ग्रहण देखा,
तब मुझे महसूस हुआ,
आज चाँद अपनी छवि से दूर है,
चाँद अपनी छवि को खोकर,
अपनी छवि से द्दूर हो गया, 
सबने भी महसूस किया, 

चाँद कितना बेबस था,
यह चाँद को ही मालूम था,
कभी सफेद रंग मे आता,
तो कभी काले रंग मे,
कभी लाल रंग में
तो कभी पीले रंग में
अन्त में वो लीन हो गया,
फिर किया था,
फिर-
एक नया रंग था,
और नयी सुबह थी,
अब लगा-
यह बेबस चाँद नही,
यह तो वही चाँद है,
जो कल मैंने देखा था.
 
 

Wednesday, June 15, 2011

"अनुपमांश ब्लॉग का लोकार्पण" (सुरेश राजपूत)


मित्रों!
आज अपने गुरुवर
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" जी की अनुकम्पा से
मैंने अपना यह ब्लॉग बना लिया है!
इसका नाम भी गुरू जी ने बहुत सार्थक रखा है
अनुपमा मेरी जीवनसंगिनी
अंश मेरा प्यारा सा बेटा
और SH. से मेरा नाम शुरू होता है, सुरेश 
अनुपमांश का लोकार्पण भी 
आदरणीय "मयंक" जी के कर-कमलों से
लगाई गई इस पोस्ट से सम्पन्न हो रहा है!