" इस सदी का बेबस चाँद"
कल मैंने चाँद पर लगा ग्रहण देखा,
तब मुझे महसूस हुआ, आज चाँद अपनी छवि से दूर है,
चाँद अपनी छवि को खोकर,
चाँद अपनी छवि को खोकर,
अपनी छवि से द्दूर हो गया,
सबने भी महसूस किया, चाँद कितना बेबस था,
यह चाँद को ही मालूम था,
कभी सफेद रंग मे आता,
कभी सफेद रंग मे आता,
तो कभी काले रंग मे,
कभी लाल रंग में तो कभी पीले रंग में,
अन्त में वो लीन हो गया,
फिर किया था,
फिर-
फिर-
एक नया रंग था,
और नयी सुबह थी,
अब लगा-
अब लगा-
यह बेबस चाँद नही,
यह तो वही चाँद है,
यह तो वही चाँद है,
जो कल मैंने देखा था.
हर ग्रहण के बाद नई सुबह को आना होता है..... सुंदर अभिव्यक्ति..... गहरा सन्देश लिए
ReplyDeleteग्रहण से उबरने के बाद नयापन आ जाता है.
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी कल शुक्रवार केचर्चा मंच पर भी है!
ReplyDeletebahut achhi rachna- shubhkamnayen
ReplyDeleteब्लॉग का नाम बहुत सुन्दर है
ReplyDeleteब्लॉग जगत में स्वागत है ..दुःख के बाद सुख की अनूभूति प्रसन्नता देती है
ReplyDelete्यही जीवन है कभी धूप तो कभी छांव है मगर हर रात के बाद सुबह जरूर आती है……….…बहुत सुन्दर लिखा।
ReplyDeletewelcome to blogjagat.dukhon main doobi raat ke baad kushiyon ki ujali subah bahut khoobsoorat hoti hai.bahut achchi rachanaa.blog ka naam bhi bahut achcha likha hai .badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..ब्लॉग जगत में स्वागत और शुभकामनायें..
ReplyDeleteराजपूत साहब! वैसे चाँद तो चाँद है पर मेरी इस लाइन पर भी ग़ौर फ़रमाएं-
ReplyDelete‘ये लकब जो सौहरे रात है, बस तोहफ़ा-ए-ज़ज्बात है;
वर्ना हो शब तारीक तो फिर चाँद की औक़ात क्या’
आपकी प्रस्तुति बहुत सुन्दर है.... कभी मेरे भी ब्लॉग पर आइये!