Wednesday, June 22, 2011

किताब

" किताब"

मेरी किताबें कितनी सारी,
रखी है वो इधर उधर,
कहती है मुझसे बार बार,
मुड़कर देखो एक बार,
मुझे खोले कितने दिन बीत गए,
अब वो दिन कब आएँगे,
एक ना एक दिन आएँगे,
मेरी यादे वापस लाएँगे,

मेरी किताबे कितनी सारी,
रखी है वो इधर उधर,
मैं बेचारी धूल की मारी,
मारी फिरती  इधर उधर, 
कितने दिन ओर झेलूँगी,
वो जब आएगे मेरी धूल झाड़ेंगे, 
मेरी किताबे कितनी सारी,
रखी है वो इधर उधर,

6 comments:

  1. किताबों को प्रतिदिन पढ़िए सुरेश जी!
    इस प्रकार इनकी धूल भी झड़ जाएगी
    और यह आपके ज्ञान में भी बृद्धि करेंगी!
    --
    यह रचना सभी के लिए उपयोगी और प्रेरक है!

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  2. मेरी किताबें कितनी सारी,
    रखी है वो इधर उधर,
    कहती है मुझसे बार बार,
    मुड़कर देखो एक बार,
    मुझे खोले कितने दिन बीत गए,


    बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

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  3. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच

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  4. अच्छा लिख है आपने ..........हम किताबों को रख तो लेते हैं मगर उन्हें पढ़ते नहीं

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  5. अच्छा लिख है आपने ..........हम किताबों को रख तो लेते हैं मगर उन्हें पढ़ते नहीं

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  6. Aksar yahee hota hai .Aapki kawita ab bahuton ko prerit karegi kitabon kee dhool zatak kar unhe padhne ko.

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