Thursday, June 16, 2011

" इस सदी का बेबस चाँद"

" इस सदी का बेबस चाँद"
कल मैंने
चाँद पर लगा ग्रहण देखा,
तब मुझे महसूस हुआ,
आज चाँद अपनी छवि से दूर है,
चाँद अपनी छवि को खोकर,
अपनी छवि से द्दूर हो गया, 
सबने भी महसूस किया, 

चाँद कितना बेबस था,
यह चाँद को ही मालूम था,
कभी सफेद रंग मे आता,
तो कभी काले रंग मे,
कभी लाल रंग में
तो कभी पीले रंग में
अन्त में वो लीन हो गया,
फिर किया था,
फिर-
एक नया रंग था,
और नयी सुबह थी,
अब लगा-
यह बेबस चाँद नही,
यह तो वही चाँद है,
जो कल मैंने देखा था.
 
 

10 comments:

  1. हर ग्रहण के बाद नई सुबह को आना होता है..... सुंदर अभिव्यक्ति..... गहरा सन्देश लिए

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  2. ग्रहण से उबरने के बाद नयापन आ जाता है.

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  3. आपकी यह उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी कल शुक्रवार केचर्चा मंच पर भी है!

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  4. ब्लॉग का नाम बहुत सुन्दर है

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  5. ब्लॉग जगत में स्वागत है ..दुःख के बाद सुख की अनूभूति प्रसन्नता देती है

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  6. ्यही जीवन है कभी धूप तो कभी छांव है मगर हर रात के बाद सुबह जरूर आती है……….…बहुत सुन्दर लिखा।

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  7. welcome to blogjagat.dukhon main doobi raat ke baad kushiyon ki ujali subah bahut khoobsoorat hoti hai.bahut achchi rachanaa.blog ka naam bhi bahut achcha likha hai .badhaai aapko.



    please visit my blog.thanks.

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..ब्लॉग जगत में स्वागत और शुभकामनायें..

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  9. राजपूत साहब! वैसे चाँद तो चाँद है पर मेरी इस लाइन पर भी ग़ौर फ़रमाएं-
    ‘ये लकब जो सौहरे रात है, बस तोहफ़ा-ए-ज़ज्बात है;
    वर्ना हो शब तारीक तो फिर चाँद की औक़ात क्या’

    आपकी प्रस्तुति बहुत सुन्दर है.... कभी मेरे भी ब्लॉग पर आइये!

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